Wednesday, October 7, 2020

छूट जाते हैं...

 रफ़्तार तेज़ हो तो नजारे छूट जाते हैं,

ऊंचाईयों पे अक्सर सहारे छूट जाते हैं।
समंदर की गहराइयों में, मिल तो जाते हैं मोती,
लहरों से मगर उनके, किनारे छूट जाते हैं।

जाने क्यूं लोग आस करते हैं उजाले की,
दिन के उजालों में, सितारे छूट जाते हैं।
गैरों में लोग ढूंढते रहते हैं मोहब्बत,
अपनों से रिश्तों में, दरारें छूट जाते हैं।

- नादिनेति

Saturday, March 3, 2012

मेरा दर्द

जो लगा लेता हूँ दिल मैं हर किसी से,
लोग समझते है ये दिल कभी खोया ही नहीं.
जो इन आँखों में ख्वाब लिए फिरता हूँ हर पल,
लोग समझते हैं मैं कभी सोया ही नहीं.
मदहोशी की धुंध इस कदर छाई है लोगो की आँखों पे,
जो अश्क पी लेता हूँ मैं मुस्कुरा के,
लोग समझते हैं कि मैं रोया ही नहीं.

Sunday, October 4, 2009

जन्मदिन

क्षितिज के चिलमन से झाकता है रवि,
होती है सुबह, पर दिन आज कुछ ख़ास है।
शब्दो की भीड़ में कुछ ढून्ढता है कवि,
बुनता है कविता, कि दिल में एक एहसास है।

सूर्ये से रोशनी की एक किरण निकलती है,
और कविता की एक पंक्ति कागज़ पे उतरती है।
हर किरण प्रकृति के चित्र में एक नया रंग भरती है,
और एक पंक्ति यूं ही बेवजह इस कविता में जुड़ती है।

रंगों के इस सरगम पर पक्षी गुनगुनाते है,
और शब्द स्वयं ही जुड़ कर कविता बन जाते है।
सूरज से निकला पर आग नहीं वो शब्द है,
चमत्कार ये देख कवि भी स्तब्ध है।

क्यों है आज प्रकृति इतनी खुशनुमा,
क्यों है आज हर तरफ खुशहाली।
सूर्य तो उगता है रोज़,
पर नहीं देता यूं आभा भरी लाली।

आज तो सूरज भी ख़ुद को रोक नहीं पाया,
कवि की कल्पना से भला कौन बच पाया।
सूरज ने लिखी कविता जो मैंने तुम्हे सुनाया,
इस तरह मैंने तुम्हारा जन्मदिन मनाया।

नदिनेती ...

Sunday, September 7, 2008

गम और मैं

चन्द पल कोइ मुझे उधार दे कि ज़िनदगी छोटी है बहुत।
कोइ मुझे एक सच्चा यार दे कि किसी की कमि है बहुत।

मानता हूँ ऐ गम तुने हर पल साथ दिया,
कितना भी गहरा हो जख्म तुने हर दम सिया।

याद है वो पल जो हमने साथ जिये,
और हर वो अश्क जो हमने साथ पिये।

पर ऐ गम, मुझपे एक एहसान कर 
कुछ देर अब तू ज़रा आराम कर।

जगह नहीं दिल में अब तेरे वास्ते
आज से अलग है अपने रास्ते।

तुझे बुलाउंगा मैं पर आज नहीं
साथ निभाउंगा मैं पर आज नहीं।

कयूँकि बुलावा आया है मेरे यार का,
और मौका है ये खुशी और प्यार का।

ऐ गम ऐ तन्हाई आज मुझे माफ़ कर,
मेरे साथ आज तू एक छोटा सा इन्साफ़ कर।

साथ छोड मेरा कि आज कुछ हिसाब करना है
इस कविता से एक दोस्त को बेताब करना है।

एक दोस्त ने छोटि सी फरमाइश की है
इसलिये इस कविता की आज नुमाइश की है।

कविता और बुलावा तो खैर सब बहाना है
हमारा मकसद तो इस पल को यादगार बनाना है।


नादिनेति …

Tuesday, August 5, 2008

Dost

कलम से झडे चंद शब्द,
कागज़ पे उतरे कविता बनाने को.
अरमान जो ह्रदय में छुपे थे,
ज़ाहिर कर उन्हें दुनिया को बताने को.
वो दोस्त जिसने ज़िन्दगी को जिंदा कर दिया,
उस दोस्त को हाल-ए-दिल सुनाने को.
ऐ दोस्त कोटि कोटि शुक्रिया तेरा,
इस नाचीज़ को लाख खामियों के बावजूद अपनाने को.
तेरे बिना ये ज़िन्दगी एक सूना सफ़र होती,
हर फूल खिलता बस यूँ ही मुरझाने को.
ऐ दोस्त तुम बस यूँ ही रहना,
हर पल हर घडी ये रिश्ता निभाने को.

Saturday, October 13, 2007

तू...

कर्म कर तू कर्म कर, हर सुख तुझे ही भोग्य है।
प्रयास कर प्रयास कर, हर कर्म के तू योग्य है।
माना अंधेरी रात है, घनघोर घटा बरसात है।
तू कयों किरण को खोजती, तू स्वयं हि तो प्रकश है।

मत सोंच तेरी मंज़िल कहाँ,
तू चल ले जाये ये दिल जहाँ।
तू पग उठा, तू कदम बढ़ा, अब दूर नहीं आकाश है।

पुकार मत चीत्कार कर, तू वज्र सी हूंकार कर;
देख तेरी चीत्कार सुन, पराजय भी है भागता;
देख तेरी हुंकार सुन, भय भी थर थर काँपता।

अपनी शक्ति को पहचान, तू नहीं एक नन्ही जान,
तू दृष्टि है, तू वृष्टि है, तू ही त्रिलोक सृष्टि है।
फ़िर कयों मन तेरा उदास है।

तू हँस, तू गा, तू खुशी से मुस्कुरा,
कुछ पाना है तुझे, तो हाथ बढा,
हर सुख तुझे प्राप्य हो, यहीं मेरा प्रयास है।

नादिनेती ।।

Tuesday, March 13, 2007

House of Heart

Dear god. O dear god
Come to me n to my thought.
Build the house of my heart,
Taking care of inner parts.
Build the love, and build the hate,
Keep the later out of gate.
Build the feelings in the air,
Mark them as ‘handle with care’.
Make some space for family n friends,
They are beyond the time n trend.
Make a space for that special someone,
Without whom the life is a dumb.
All the bad habits, n all the bad names,
Should be kept out of games.
And keep the most precious places,
Just for you, n your blesses.
Always n only yours

Pyar

किसी की जिन्दगी बसाना भी प्यार है,
और जिन्दगी भर बस ना पाना भी प्यार है.
किसी की आंखो मे खो जाना भी प्यार है,
किसी से नज़रे ना मिला पाना भी प्यार है.
हर कदम पर साथ निभाना भी प्यार है,
और चलते-चलते रुक जाना भी प्यार है.
किसी का बहुत याद आना भी प्यार है,
और किसी को हर पल भूलाना भी प्यार है.
लफ्ज़ों को जोड़ कर कविता बनाना भी प्यार है,
और लफ्जों का ना मिल पाना भी प्यार है.
कभी दिल की धड़कनो मे रम जाना भी प्यार है,
और इन धड़कनो का रुक जाना भी प्यार है.
ख्वाबो में दिल लगाना भी प्यार है,
और कभी नींद ही ना आना भी प्यार है.
किसी से घंटो बाते बनाना भी प्यार है,
किसी से कुछ कह ना पाना भी प्यार है.
ये प्यार आवाज़ भी है और खामोशी भी.
ये प्यार बेचैनी भी है और मदहोशी भी.
ये प्यार ज़न्नत से बड़ी आबादी भी है
और ज़हन्नुम से बड़ी बर्बादी भी.
ये प्यार ही तो है जो हम सब के दिलों को जोड़ता है, 
और उस पर्वर्तेगार का ज़स्बा हमारे दिलो में रोशन करता है.
वो प्यार ही तो है …………

आपका प्यारा

Tanhaai

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है.
जाने लोग इस तन्हाई से इतना क्यों डरते है?
तन्हाई तो दोस्त होती है परछाई से भी बड़ी.
जो देती है साथ हर पल हर घड़ी.
परछाई तो अँधेरे में साथ छोड़ देती है.
अनकही, अधूरी सी बात छोड़ देती है.
पर तन्हाई मेरे साथ तब होती है,
जब मेरे साथ कोई नही होता.
वो मेरे साथ हँसती और रोती है,
जब मैं अपनो कि याद में हूँ खोता.
ये तन्हाई मुझे याद दिलाती है हर बीते पल कि,
और भविष्य में आने वाले मंज़िल की.
जब भी मैं और मेरी तन्हाई बाते करते है.
जाने लोग इस तन्हाई से इतना क्यों डरते है?

तनहा मुसाफिर.....

Ek Safar

एक दिन मैं जा रहा था.
बस चलता ही जा रहा था.
अनभिज्ञ था, नादान था.
बेखबर था, अनजान था.
बेसुध सा, ना जाने कहां,
बस चलता ही जा रहा था.

ना मौसम का कोई हाल था.
ना दिल में कोई ख़याल था.
जाने किस मंज़िल के पीछे
बस चलता ही जा रहा था.

बिखरे थे फुलो के सेज.
लेकिन मैं समय से भी तेज़.
ना किसी से दूर, ना किसी के पास
बस चलता ही जा रहा था.

ना मुझे कोई होश था.
ना उमंगो का जोश था.
फिर भी ना जाने क्यों
मैं चलता ही जा रहा था.

ना डरा, ना झुका.
ना थमा, ना रुका.
अडिग पेर निस्तेज
बस चलता ही जा रहा था.

क्या कभी ख़त्म होगा ये सफ़र.
अर्थहीन था करना ऐसी फिकर.
मुझे तो बस चलना था, इसलिये
मैं चलता ही जा रहा था.
बस चलता ही जा रहा था.
शायद चलता ही रहूंगा . . . . . . . . . .


अचानक एक धमाका हुआ.
छाया हर तरफ काला धुँआ.
क्या इस धुए में भी निरंतर
मैं चलता ही रहूंगा?

मन मे एक ख्याल आया.
एक अनोखा सवाल आया.
कब तक यूँ ही बिना मंज़िल के.
मैं चलता ही रहूंगा?

कोई तो मुझे चलना सिखाये.
कोई तो मुझे मंज़िल दिखाए.
क्या सदा इसी इंतज़ार में
मैं चलता ही रहूंगा.

क्या अपनी मंज़िल खुद नही खोज सकता?
क्या अपने कदम खुद नही मोड़ सकता?
ख़त्म करुंगा ये इंतज़ार
फिर भी चलता ही रहूंगा.

परंतु . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

नए उत्साह से, नए उद्वेग से.
नयी रफ़्तार, नए वेग से.
एक नयी आशा के साथ
मैं चलता ही रहूंगा.

बेसुध नही, निस्तेज नही.
स्थिर नही, पेर तेज़ नही.
उस मंज़िल को पाने के लिए
मैं चलता ही रहूंगा.
सदा चलता ही रहूंगा..